रविवार, 15 अप्रैल 2018

वक्त बहुत बदल गया



समय कितना बदल गया है, इसका एहसास आज के दिन सबसे अधिक होता है. 1974 या 1975 में 14 अप्रैल की घटना है. साल ठीक से याद नहीं आ रहा. इमरजेंसी लगने से पहले की घटना है. त्रिनगर से 91 नंबर बस से सुबह करीब 9:30 बजे केंद्रीय सचिवालय पहुंचा. उन दिनों संसद परिसर के सारे गेट खुले होते थे इसलिए सभी लोग केंद्रीय सचिवालय से संसद मार्ग आने के लिए संसद परिसर के रास्ते से शार्ट कट मारते थे. कोई जांच नहीं, कोई टोकाटाकी नहीं, कोई पाबंदी नहीं, कोई हिचक नहीं. संसद परिसर से गुज़रने वाला रास्ता आम रास्ता हो गया था. उन दिनों बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती पर राजपत्रित अवकाश यानी गैज़ेटेड हॉलिडे नहीं होती थी. सभी सरकारी ऑफिस खुले होते थे.
उस दिन भी संसद परिसर से लोगों का रेला गुज़र रहा था. मैं भी वहां से गुज़र रहा था. रास्ते से करीब 20-25 फुट की दूरी पर बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की विशाल प्रतिमा है. उनकी जयंती पर हर साल वहां माल्यार्पण होता है. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी माल्यार्पण के लिए आई थीं. कुछ सांसद और कई गण्यमान्य व्यक्ति मौजूद थे. अच्छा खासा जमावड़ा और प्रधानमंत्री को देख कर  मैं भी रूक गया और वहां काफी देर तक प्रोग्राम का आनंद लिया. आज की पीढ़ी ऐसे वक्त की कल्पना भी नहीं कर सकती कि कभी ऐसा भी वक़्त होता था जब प्रधानमंत्री सुरक्षा के कड़े घेरे में नहीं  होते थे. आम जनता के बीच रहते थे. यह सोच कर ही कितना सुखद लगता है कि मैने बिना किसी निमंत्रण के इतने क़रीब रह कर देर तक प्रधानमंत्री के साथ प्रोग्राम का आनंद लिया. इस देश के किसी भी व्यक्ति ने और मैंने भी उस समय कल्पना भी नहीं की थी कि हम अपने ही प्रधानमंत्री से दूर हो जाएंगे. कारण कुछ भी रहे हों, वक़्त बहुत बदल गया है. अब ना वो रास्ते रहे और ना ही प्रधानमंत्री के करीब रह कर प्रोग्राम देखने के अवसर. अब तो टीवी स्क्रीन पर प्रधानमंत्री को देख कर संतोष कर लेते हैं.