सैर से लौटते हुए पंडित शिवानंद से मुठभेड़ हो गई। यूं तो पंडित जी से अक्सर भेंट हो जाती थी, लेकिन सुबह-सुबह चंदन में लिपटे पंडित जी चुनावी चर्चा में उलझाने के मुड से मिले थे। इसलिए उनकी ये मुलाकात मुठभेड़ की कैटेगरी में ही रखी जी सकती है। पूजा का लिबास और बातचीत का अंदाज कुछ खास, मानो वो भी चुनाव के रंग में रंगे हुए हों। यूं कहें किसी चुनावी पोस्टर में लिपटे हुए से लग रहे थे। वैसे चेहरा शांत था, कोई आक्रोश नहीं, चेहरे पर ना वाणी में। अभिवादन का भी पूरा वक्त नहीं दिया और सीधे सवाल सरका दिया-पत्रकार जी! अपने क्षेत्र में किस गधे को जिता रहे हो। सवाल में तंज रिस रहा था। मैंने उल्टे उन्हीं से सवाल किया- पंडित जी आज आप ‘पत्रकार जी’ कहकर व्यंग्य कर रहे हैं, कोई खास बात है क्या।
पंडित जी ने गंजे सिर पर हाथ फिराते हुए कहा- पत्रकार जी! चुनावी सीजन है। हमारे देश में चुनावी रथ नेता नहीं, पत्रकार खींचते हैं। चुनावी अखाड़े में उतरे नेताओं का वजन कूतते हैं। आपकी बिरादरी पर भारी बोझ आ जाता है। रात दिन आप देश सेवा में जुटे रहते हैं। सच पूछो, आप लोकतंत्र में चुनावी यज्ञ संपन्न कराने के लिए दिन-रात तपस्या करते हैं। चारों ओर पत्रकारों की ज्ञान गंगा बह रही होती है। पूरा देश उसमें डुबकी लगाता है। ऐसे तपस्वी पत्रकार की इज्जत करना हर नागरिक का पहला धर्म होना चाहिए। जब किसी पत्रकार को सम्मान के साथ ‘पत्रकार जी’ कहकर संबोधित करता हूं तो मानो मैं उसी धर्म का पालन कर रहा हूं।
पत्रकार जी! चैनल और अखबार क्या दिखा रहे हैं, छाप रहे हैं, मुझे उससे ज्यादा सरोकार नहीं है। आप तो ये बताइए अपने क्षेत्र में कौन गधा जीत रहा है। आप पूरे देश का लेखा-जोखा रखते हैं। टेबल पर बैठे-बैठे महाभारत के संजय की तरह 543 लोकसभा क्षेत्रों के हालात देख लेते हैं। किसी एक पार्टी या गठबंधन की सरकार भी बना देते हैं। मध्यावधि चुनाव की भविष्यवाणी भी कर देते हैं। इतना ज्ञान है आपके पास। आप बताइए अपने इलाके में कौन गधा हमारे मत का पात्र है। कौन जीत रहा है, अपन भी उसी के साथ हो जाएंगे।
थोड़ा-थोड़ा समझ में आ रहा था कि पंडित जी व्यंग बाण क्यों चला रहे हैं। पंडितों और ज्योतिषाचार्यों का कारोबार जो ठंडा पड़ा है। जनता का ध्यान सर्वे पर है। लोग अखबार पढ़ रहे हैं, टीवी देख रहे हैं। सभी जानते हैं कि कभी किसी का सर्वे सटीक नहीं रहा। फिर भी दिलचस्पी कम नहीं हो रही है। यहीं एक ऐसा पेशा है जिसमें झुठ बोलकर माफी मांगने की परंपरा नहीं है। आजतक किसी चैनल और अखबार ने सर्वे गलत होने पर कभी शर्मिंदगी का भाव प्रकट नहीं किया। आज पंडित जी पूरी तरह शर्मिंदा करने पर आमादा थे। बोले पत्रकार जी! कुछ तो बताइए। वैसे भी आपका आकलन गलत निकला तो हम आपको कटघरे में थोड़े ही खड़ा करेंगे। पंडित जी बड़ी विनम्रता से भिगो-भिगोकर वहीं मार रहे थे जो आजकल नेताओं की ओर मिसाइल की तरह चल जाते हैं। हमने पलटवार किया। पंडित जी! आप भी तो भविष्यवाणी करते हैं। नेताओँ का भाग्य पढ़ते हैं। सरकार बनाते-गिराते हैं। नेताओं की कुंडली में ग्रहों के घर बदलते रहते हैं। आप बताइए, अपने इलाके में कौन पहनेगा ताज। देखिए पत्रकार जी! हम भविष्यवाणी तो त्रिकालदर्शी पत्रकारों के सर्वे आने के बाद ही करते हैं। अभी थोड़ा समय लगेगा। सच पूछो तो पत्रकार ज्ञान के भंडार हैं, उन्हें दुनिया जहान की सारी जानकारी होती है। आप ज्ञानियों की सुनकर ही हम कुछ बोलेंगे। जवाब सूझ नहीं रहा था। पंडित जी अपने सात्विक किस्म के लजाने वाले विचारों को लालू के गरीब रथ की तरह ‘विजयी भाव’ से मेरी ओर ठेले जा रहे थे। मैंने कहा-पंडित जी। अच्छे भले इंसान चुनावी दंगल में लड़ रहे हैं। आप बार-बार उन्हें गधा क्यों कह रहे हैं ।पंडित जी थोड़े तैश में आए, थोड़ा थुथने फुलाए, थोड़ा गला साफ किया और बलगम को पूरी ताकत के साथ बगल की झाड़ी में विसर्जित करने के बाद बोले क्या बात कर रहे हैं पत्रकार जी। बात-बात में झूठ बोले, झूठे वायदे करे, वोट लेने के बाद पांच साल शक्ल ना दिखाए, सार्वजनिक धन पर नजर गड़ाए रखे, योग्य लोगों को प्रोत्साहन देने के बजाय रिश्ते-नातेदारों को आगे बढ़ाए। ऐसे लोगों को आप इंसान कहते हैं ? पत्रकार जी! हमारी लोकतांत्रिक विवशता है, ऐसे ही लोगों में से किसी एक को चुनना है। लोकतंत्र के महाकुंभ में मतदान की पवित्र सरिता में डुबकी लगाकर ‘पुण्य’ तो कमाते हैं लेकिन उस पुण्य का फल पूरे समाज के बजाय चंद लोग खा जाते हैं। हर चुनाव में यहीं होता है। हर बार इस उम्मीद के साथ मतदान केंद्र पर जाकर मशीन का बटन दबाते हैं कि शायद इस बार उम्मीदों पर खरा उतरने वाला नेता इस मशीन से बाहर आ जाए। हर बार निराशा हाथ लगती है लेकिन फिर भी हम मतदान की लोकतांत्रिक परंपरा को जरूर निभाते हैं। मतदान हमारा अधिकार है और यही अधिकार एक दिन बदलाव लाएगा।
पंडित जी कथावाचन की शैली में अपनी बात कहे जा रहे थे। अचानक उन्होंने पैंतरा बदला और मीडिया को भी घसीट लाए अपनी भावनाओं के झंझावत में। पत्रकार जी! निकम्मे, झूठे और लंपट नेताओं से मोहभंग हो गया है। ऐसे नेताओं से आप पत्रकार ही निपट सकते हैं। बराबरी का मुकाबला रहता है। आप लोग ना हों तो ना जाने ये नेता क्या कर दें। इसलिए चौथा स्तंभ ताकतवर माना जाता है। इस ताकतवर चौथे स्तंभ के त्रिकालदर्शी पत्रकारों को मेरा शत-शत प्रणाम।
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
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Joshi Ji
जवाब देंहटाएंNamaskar,
Aapka Lekh bada hi rochak hai. Esne janmanas me Patrakaro ke Trikaldarshi Patrakarita ke chavi ke kpol khol kar rakh de hai. kam se kam ab mai Chunavi Bhavishyavani karne ke galti nahi karoonga. Aap gud-gudane me kafi mahir hai.
AshoK Kumar Singh (JOURNALIST)
हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
जवाब देंहटाएंexcellent
जवाब देंहटाएंइस नए ब्लॉग के साथ आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. आपसे बहुत उम्मीद रहेगी हमें .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति है पढ़ कर आंनद आ गया
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