शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

लोकतंत्र नहीं सिखाता, आपस में मेल रखना

अपन के लोकतंत्र में लोक भी है, तंत्र भी है, फिर भी  स्वस्थ लोकतंत्र नहीं है; परिपक्व ना दिखने वाले मौजूदा लोकतंत्र में जो नहीं दिखता, वो है निःस्वार्थ भाव से जनसेवा का जज़्बा. सेवा के नाम पर महज कुर्सी की दौड़ है; इसे पाने के लिए जनसेवक का चोगा पहने 'अपने नेता' कुछ भी कर सकते हैं; कुछ भी का मतलब कुछ भी. अपनी ही पार्टी के नेताओं की काबिलियत पर प्रश्नचिह्न लगा कर निकम्मा नाकारा बता सकते हैं; अपनी ही पार्टी में विरोधियों का राजनीतिक कद छोटा करने के लिए बग़ावत भी करनी पड़े तो चूकते नहीं हैं. काला-सफेद सब कुछ कर सकते हैं.
     विपक्षी दलों की आलोचना तो सभी करते हैं लेकिन अपने देश के लोकतंत्र में ऐसी परम्पराएं पनप रही हैं कि विपक्षी दलों की ज़रूरत ही नहीं है. जो काम विपक्ष के नेता करते हैं वो अब अपनी ही पार्टी के लोग कर देते हैं.
   झज्जर ज़िले के मुंडाहेड़ा गांव में रैली के दौरान अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह जिस तरह बरसे, उससे तो यही लगता है स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है. राज्य के दो विपक्षी दलों कांग्रेस और इनेलो का काम अकेले केंद्रीय मंत्री कर रहे हैं. राव इंद्रजीत सिंह केंद्र में मंत्री हैं. मंत्री का मतलब देश के सबसे जिम्मेदार चुनिंदा लोगों में से एक. उन पर  राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदाजियों का भार सबसे अधिक है.  इसके बावजूद राव साहब ने  मुुंडाहेड़ा में खुल्लमखुल्ला कह दिया कि मुख्यमंत्री के संरक्षण में समाज जाति के आधार पर बंट रहा है. समाज में भाईचारा और सौहार्द खत्म हो रहा है. उन्होंने कहा- "यह कास्ट डिवाइड तभी खत्म होगा जब ऐसे इंसान को सीएम बनाया जाए जो सीएम बनके नेता ना बने, बल्कि नेता हो, वो सीएम बने.'' 

इस बहाने उन्होंने अपना सीएम बनने का दावा भी ठोक दिया और भावी योजना का एलान करते हुए यह भी कहा कि अगर मुझे मुख्यमंत्री बनाया तो कास्ट डिवाइड खत्म करने के लिए पूरा समय दूंगा.
राव साहब से एक सवाल बहुत ज़रूरी है. जब आप कांग्रेस में थे तब 2005 में गोहाना कांड हुआ और 2010 में मिर्चपुर कांड. मिर्चपुर में तो 90 साल के एक बुजुर्ग और एक दिव्यांग नाबालिग बच्ची जल कर मर गई थी. तब भाईचारे की भावना क्यों नहीं जागी. क्या तब आपने अपनी सरकार पर खुल्लमखुल्ला प्रहार किया था. क्या आप पीड़ितों से मिलने गए थे.
राव साहब क्यों भूल गए कि वो जिस पार्टी की सरकार में मंत्री हैं, मनोहर लाल उसी पार्टी के मुख्यमंत्री हैं. राव साहब मुख्यमंत्री के साथ अपनी ही पार्टी की भी फजीहत कर रहे हैं. परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काबिलियत को भी चुनौती दे रहे हैं क्योंकि मनोहर लाल का चयन मोदी ने किया है.
इतिहास गवाह है कि लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले राव साहब को अचानक आत्मज्ञान मिलता है कि 'हमारा' मुख्यमंत्री काम नहीं कर रहा है; उसे जगाने या खुद पार्टी से निकलने की पष्ठभूमि तैयार करने के लिए निकल पड़ते हैं 'रैली' का डंडा लेकर. 2014 के चुनाव से पहले भी यही हुआ; अपने मुख्यमंत्री  से तरह तरह के तरीकों से नाराजगी ज़ाहिर कर रहे थे. लब्बोलुआब यह है कि राव साहब को कोई मुख्यमंत्री नहीं भाता. रैली की रिपोर्ट पढ़ते समय अनायास मुंह से निकला-
सानू एक पल चैन ना आवे,
कोई सीएम मन को ना भावे
हाय मैं की करां
राव इंद्रजीत सिंह ने रैली में सहानुभूति बटोरने के लिए भी जबरदस्त पासा फेंका. उन्होंने एलान कर दिया कि 2019 का चुनाव उनका आखिरी चुनाव है और वो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं. कोई नेता आखिरी चुनाव कह कर चुनाव मैदान में उतरता है तो जनता सहानुभूति दिखा कर आखिरी इच्छा पूरी करने की कोशिश करती है. साथ में यह भी कह दिया कि कास्ट डिवाइड खत्म करने के लिए ऐसे इंसान को मुख्यमंत्री बनाना जरूरी है जो नेता हो; मुख्यमंत्री से नेता ना बना हो. इस लाइन से मनोहर लाल का पत्ता साफ कर खुद को यानी पके हुए नेता को मुख्यमंत्री बनाने की अपील कर रहे हैं. शायद राव साहब यह नहीं जानते कि चुनाव जीतने के लिए नेता होना ज़रूरी है; राजकाज चलाने के लिए नेता होना ज़रूरी नहीं होता. यह बात मनोहर लाल ने साबित कर दी है.
मुंडाहेड़ा में रैली कर राव साहब यह भी साबित करना चाह रहे थे कि वे अहीरवाल से बाहर भी बड़ी रैली कर सकते हैं. इससे राज्य में यह सन्देश जाएगा कि वे गैर जाटों के भी नेता हैं. अपना 'अहीर' नेता का टैग उतारने के लिए राव साहब जाट बहुल क्षेत्रों में और भी कई रैलियां कर सकते हैं. बीजेपी के सांसद राजकुमार सैनी ने गैर जाटों को लामबंद करने के लिए जो विषवमन किया है उसका लाभ उठाने की रणनीति भी बना सकते हैं. लेकिन इसका लाभ राव साहब को मिलता नहीं दिख रहा है क्योंकि ग़ैर जाट राजनीति की फेंचाइजी फिलहाल राजकुमार सैनी के पास है.
अहीरवाल में योगेंद्र यादव की वोट कटवा भूमिका के कारण नई पार्टी पर सवार होकर सत्ता की वैतरणी पार करना राव साहब के लिए बहुत मुश्किल होगा. इनके सीएम बनने के इरादों में आप आदमी पार्टी भी फच्चर फँसायेगी. कांग्रेस, बीजेपी और इनेलो-बसपा गठबंधन ने पहले ही समीकरण उलट पुलट कर रखे हैं. इन हालात में क्या हरियाणा इंसाफ कांग्रेस को महज 'सहानुभूति' सत्ता तक पहुंचा पाएगी. इस टेढ़े सवाल का सीधा जवाब ढूंढना नाइंसाफ़ी होगी.

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