शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

एक आदर्श डॉक्टर का स्मरण

चेहरे पर चैन था, बच्चे के बचने की उम्मीद उसके हर शब्द से झलक रही थी। लंबे सफर की थकान कहीं आसपास भी नहीं थी। बोकारो के पास छोटे-से कस्बे फुसरो (बेरमो) से रात भर रेल का सफर तय कर कोलकाता (तब कलकत्ता नाम था) आए थे। छीतर मल गोयल जी को पिताजी ने भेजा था। उनके साथ उनकी पत्नी थी और उनकी गोद में ढाई-तीन साल का बच्चा था। पिताजी के बहुत करीबी थे इसलिए मैंने परिवार के सदस्य की तरह उनका स्वागत किया था। छीतर मल गोयल जी की पत्नी की गोद में जो बच्चा था वो एक खास तरह की बीमारी से तिल तिल कर मौत की और जा रहा था। इससे पहले उनके दो बच्चे इसी बीमारी से काल कवलित हो गए थे। बच्चे स्वस्थ पैदा होते थे; दो साल तक स्वस्थ रहते थे। उसके बाद जानलेवा बीमारी घेर लेती थी। दो बच्चों का स्थानीय अस्पतालों में इलाज करवाया लेकिन नहीं बच पाए। तीसरे बच्चे का इलाज करवाने कोलकाता आए थे। साल ठीक से याद नहीं है, 1974 या 1975 का साल रहा होगा। सरकारी नौकरी में मेरी पहली पोस्टिंग कोलकाता में हुई थी। उस बच्चे को इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (आईसीएच) में दाखिल करवा दिया था। बच्चों के इलाज के लिए इससे बेहतर कोई अस्पताल नहीं था। बच्चा दाखिल करवाने के बाद पता चला कि डॉक्टर शिशिर कुमार बोस उस इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर हैं। मेरे ऑफिस के लोगों ने ही बताया था कि डॉक्टर शिशिर बोस साधारण इंसान नहीं हैं। वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरतचंद्र बोस के बेटे हैं यानी नेता जी के भतीजे हैं। यह सुनने के बाद आश्वस्त हो गया था कि इंस्टिट्यूट के प्रबंधन में ईमानदारी होगी; डॉक्टर कर्तव्यनिष्ठ होंगे; ईलाज में कोई कोताही नहीं होगी। करीब एक सप्ताह तक बच्चे की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ; बल्कि तबियत थोड़ी बिगड़ गई थी। बच्चे के माँ पिता बहुत चिंता में थे। वे दोनों डॉक्टर शिशिर कुमार बोस के निजी क्लिनिक पर मिल कर सलाह लेना चाहते थे। मेरे पर दबाव बना रहे थे कि मैं उनके साथ जाऊँ। अखिरकार मैं उनके साथ डॉक्टर साहब के क्लिनिक पर गया। उन्होंने पर्याप्त समय दिया; तसल्ली से बात की। छीतर मल गोयल जी मारवाड़ी समाज से थे। उस समाज में यह मान्यता है कि डॉक्टर से सलाह लेने के बाद फीस अवश्य देनी चाहिए। फीस ना देना अपशकुन होता है। ऐसा मानते हैं कि रोगी की मृत्यु होने पर फीस नहीं दी जाती है इसलिए डॉक्टर शिशिर कुमार बोस को फीस देने की पेशकश की। उन्होंने फीस लेने से मना कर दिया। अपशकुन टालने के लिए छीतर मल जी फीस देने पर अड़े हुए थे। उनका धर्मसंकट समझ गया था इसलिए मैंने भी फीस लेने के लिए आग्रह किया। डॉक्टर ने कहा कि बच्चा जिस इंस्टिट्यूट में दाखिल है मैं उसका डायरेक्टर हूँ इसलिए फीस लेना अनैतिक है। फिर भी आप कंसल्टेशन फीस देना चाहते हैं तो दे दीजिए, मैं कल सुबह इंस्टीट्यूट जाकर डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दूँगा। भागदौड़ के बावजूद बच्चा तो नहीं बच पाया लेकिन डॉक्टर शिशिर कुमार बोस से अमूल्य अनुभव मिला। इस पूरी घटना से एक बात समझ आई कि शालीनता और ईमानदारी कोई दासी नहीं हैं जिन्हें जब चाहा सेवा के लिए बुला लिया और जब चाहा उन्हें भगा दिया। शालीनता और ईमानदारी कोई आवरण भी नहीं हैं कि छवि सुधारनी हो तो उसे ओढ़ लिया और बाद में उतार दिया। शालीनता और ईमानदारी संस्कार से आते हैं और संस्कार परिवार से मिलते हैं। डॉक्टर शिशिर कुमार बोस की शालीनता और ईमानदारी का आज भी कायल हूँ। उनके व्यवहार ने साबित कर दिया था उनकी रगों भी वही खून है जो नेता जी सुभाष चंद्र बोस की रगों में है। मैंने अखबार में पढ़ा था कि डॉक्टर शिशिर कुमार बोस विधायक हो गए थे और उनकी पत्नी कृष्णा बोस 1996 से 2004 तक सांसद थीं।

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